गुजर जाएगा ये दौर भी ज़रा इत्मीनान तो रख जब ख़ुशी ही ना ठहरी तो ग़म की क्या औकात है।
जज्ब-ए-इश्क सलामत है तो इन्शा अल्लाह, कच्चे धागे में चले आयेंगे सरकार बंधे।
"कर लेता हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ.. की खुदा नूर भी बरसाता है ... आज़माइशों के बाद".!!!
हथियार तो सिर्फ सोंख के लिए रखा करते हे , खौफ के लिए तो बस नाम ही काफी हे ।
शुबह हुई कि छेडने लगा है सूरज मुझको । कहता है बडा नाज़ था अपने चाँद पर अब बोलो ।।
दर्द ऐ महोबत तो हमने भी बहुत की, पर भुल गये थे की HEROIN कभी VILLAIN की नही होती...!!
जज्ब-ए-इश्क सलामत है तो इन्शा अल्लाह, कच्चे धागे में चले आयेंगे सरकार बंधे।
"कर लेता हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ.. की खुदा नूर भी बरसाता है ... आज़माइशों के बाद".!!!
हथियार तो सिर्फ सोंख के लिए रखा करते हे , खौफ के लिए तो बस नाम ही काफी हे ।
शुबह हुई कि छेडने लगा है सूरज मुझको । कहता है बडा नाज़ था अपने चाँद पर अब बोलो ।।
दर्द ऐ महोबत तो हमने भी बहुत की, पर भुल गये थे की HEROIN कभी VILLAIN की नही होती...!!
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