हमने ये शाम चराग़ों से सजा रक्खी है;
आपके इंतजार में पलके बिछा रखी हैं;
हवा टकरा रही है शमा से बार-बार;
और हमने शर्त इन हवाओं से लगा रक्खी है।
“ए पलक तु बन्द हो जा, ख्बाबों में उसकी सूरत तो नजर आयेगी इन्तजार तो सुबह दुबारा शुरू होगी कम से कम रात तो खुशी से कट जायेगी ”
उनका भी कभी हम दीदार करते है उनसे भी कभी हम प्यार करते है क्या करे जो उनको हमारी जरुरत न थी पर फिर भी हम उनका इंतज़ार करते है !
उसके इंतजार के मारे है हम.. बस उसकी यादों के सहारे है हम… दुनियाँ जीत के कहना क्या है अब..?? जिसे दुनियाँ से जीतना था आज उसी से हारे है हम..
आपके इंतजार में पलके बिछा रखी हैं;
हवा टकरा रही है शमा से बार-बार;
और हमने शर्त इन हवाओं से लगा रक्खी है।
“ए पलक तु बन्द हो जा, ख्बाबों में उसकी सूरत तो नजर आयेगी इन्तजार तो सुबह दुबारा शुरू होगी कम से कम रात तो खुशी से कट जायेगी ”
उनका भी कभी हम दीदार करते है उनसे भी कभी हम प्यार करते है क्या करे जो उनको हमारी जरुरत न थी पर फिर भी हम उनका इंतज़ार करते है !
उसके इंतजार के मारे है हम.. बस उसकी यादों के सहारे है हम… दुनियाँ जीत के कहना क्या है अब..?? जिसे दुनियाँ से जीतना था आज उसी से हारे है हम..
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