April 09, 2016
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तू बेशक अपनी महफ़िल में मुझे बदनाम करती हैं…
लेकिन तुझे अंदाज़ा भी नहीं कि वो लोग भी मेरे पैर छुते है
जिन्हें तू भरी महफ़िल में सलाम करती है

बारुद जैसी है मेरी शक्शीयत ..
जहा से गुजरता हुं,
लोग जलना शुरु कर देते हैं !!

हम इतने खूबसुरत तो नही है..
मगर हाँ…
जिसे आँख भर के देख ले
उसे उलझन मेँ डाल देते हॆ 

हम दुश्मन को भी बड़ी पवित्र सज़ा देते हैं!
हाथ नही उठाते, बस नजरो से गिरा देते हैं.

माना कि तुम्हारा नाम सुनते ही नशा चढ जाता हैँ,
लेकिन हम भी वो हे जिनका नाम सुनते ही,
अच्छे अच्छोँ का नशा उतर जाता हैँ.

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