April 17, 2016
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तन्हाई जब मुक़द्दर में लिखी है;
तो क्या शिकायत अपनों और बेगानों से;
हम मिट गए जिनकी चाहत में;
वो बाज ना आए हमे आज़माने से।

जगाया उन्होंने ऐसा के अब तक सो न सके;
रुलाया उन्होंने ने फिर भी हम रो न सके;
न जाने क्या बात थी उन में;
जो अब तक हम किसी के भी न हो सके।

ग़म ने हंसने ना दिया, ज़माने ने रोने ना दिया;
इस उलझन ने जीने ना दिया;
थक के जब सितारों से पनाह ली;
नींद आई तो आपकी याद ने सोने ना दिया।

तन्हा हो कभी, तो मुझ को ढूंढना;
दुनियां से नहीं, अपने दिल से पूछना;
आस-पास ही कहीं बसे रहते हैं हम;
यादों से नहीं, साथ गुज़ारे लम्हों से पूछना।

आप को खोने का हर पल डर लगा रहता है;
जब कि आपको पाया ही नहीं;
तुम बिन इतना तन्हा हूँ मैं;
कि मेरे साथ मेरा साया भी नहीं।

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